हिन्दी : राजभाषा, राष्ट्रभाषा या विश्वभाषा
राष्ट्रभाषा क्या है?
- राष्ट्रभाषा का अर्थ है- समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात् आम जन की भाषा। जो समस्त राष्ट्र में जन-जन के विचार विनिमय का माध्यम हो।
- राष्ट्रभाषा सामाजिक- सांस्कृतिक मान्यताओं परंपराओं के द्वारा सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोङने का काम करती है।
- राष्ट्रभाषा का रूप लचीला होता है और इसे जनता के अनुरूप किसी भी रूप में ढाला जा सकता है।
- राष्ट्रभाषा का प्रयोग क्षेत्र विस्तृत और देशव्यापी होता है। राष्ट्रभाषा सारे देश की संपर्क भाषा होती है।
- हमारे देश भारत की कोई भी राष्ट्रभाषा नहीं हैं। हिन्दी हमारे देश की राज भाषा है।
- हमारे देश की संपर्क भाषा और राजभाषा दोनों हिन्दी ही है।
राजभाषा क्या है?
- राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है- राजकाज की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह ’राजभाषा’ कहलाती है।
- राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है। हिन्दी को 14 सिंतबर 1949 को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया, इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को ’हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- वर्तमान समय में भारत सरकार के कार्यालयों एवं हिन्दी-भाषी राज्यों में राजकाज हिन्दी में होता है। अन्य राज्य सरकारें अपनी-अपनी भाषाओं में कार्य करती है। यथा-महाराष्ट्र मराठी में, गुजरात गुजराती में, पंजाब पंजाबी में आदि।
- राजभाषा का एक निश्चित मानक स्वरूप होता है, जिसके साथ छेङछाङ या प्रयोग नहीं किया जा सकता।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा 1917 में भरुच (गुजरात) में सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई थी। तत्पश्चात 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने का निर्णय लिया तथा 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा हिन्दी को देवनागरी लिपि में राजभाषा का दर्जा दिया गया।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर 1953 से 14 सितंबर को 'हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से लेकर अनुच्छेद 351 तक राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान किए गए। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग का गठन किया गया। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग का गठन किया गया। राष्ट्रपति के आदेश द्वारा 1960 में आयोग की स्थापना के बाद 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित हुआ, तत्पश्चात 1968 में राजभाषा संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से लेकर अनुच्छेद 351 तक राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान किए गए। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग का गठन किया गया। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग का गठन किया गया। राष्ट्रपति के आदेश द्वारा 1960 में आयोग की स्थापना के बाद 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित हुआ, तत्पश्चात 1968 में राजभाषा संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया।
हिंदी क्यों नहीं बनी राष्ट्रभाषा?
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने की कल्पना महात्मा गांधी ने की थी, क्योंकि महात्मा गांधी गुजराती भाषी थे. अंग्रेजी भाषा में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी, परन्तु वे राष्ट्र के विकास में राष्ट्रीय एकता में राष्ट्रभाषा के महत्व को समझते थे और उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पीछे जो तर्क दिये थे उसमें सबसे मजबूत तर्क देश में हिन्दी का व्यापक आधार होना था. गांधी जी का कहना था कि जो भाषा देश में सर्वाधिक बोली या समझी जा सकती है वह हिन्दी है, और हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने से हिन्दी भारत सरकार की भाषा भी बनेगी तथा आम आदमी की सहभागिता भी राज्य व्यवस्था में हो सकेगी.
महात्मा गांधी ने जब राष्ट्रभाषा के प्रचार का काम शुरु किया था तो उसकी शुरुआत भी दक्षिण और तमिलनाडू से की थी. परन्तु अब तमिलनाडू के शासक अपने निहित स्वार्थो के लिये हिन्दी के प्रयोग के विरोध में है हालंाकि दूसरा पक्ष यह भी है कि तमिलनाडू की जनता हिन्दी विरोधी मानस की नहीं है. यह मैं अपने अनुभव के आधार पर भी कह सकता हूं और कतिपय तथ्यों के आधार पर भी.
अब प्रश्न यह है कि हिन्दी राष्ट्रभाषा क्यों नही बन पा रही है, इसके कारणों पर विचार किया जाना चाहिये? हमारा देश कुछ मामलो में बढ़ा स्वपन दर्शी और बड़ा भावुक भी है. अगर हमारा कोई शासक संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी बोल दे तो हम इसे शासक का दायित्व नहीं बल्कि एक ऐसी महान घटना के रुप में देखते है जैसे शासक ने भारत के ऊपर कोई कृपा कर दी हो.
इतने ही मात्र से हम उसकी तारीफ के कसीदे पढ़ना शुरु कर देते है, और यह प्रश्न पूछना भूल जाते है कि अगर वे मानते है कि हिन्दी का प्रयोग करना शासक और शासन का गुण है तो फिर अपने देश में हिन्दी को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बनाते. दरअसल हमारे देश के शासकों में संकल्प शक्ति का बड़ा अभाव रहा है. पिछले एक वर्ष की 2-3 घटनाओं का उल्लेख जरुरी है.
इतने ही मात्र से हम उसकी तारीफ के कसीदे पढ़ना शुरु कर देते है, और यह प्रश्न पूछना भूल जाते है कि अगर वे मानते है कि हिन्दी का प्रयोग करना शासक और शासन का गुण है तो फिर अपने देश में हिन्दी को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बनाते. दरअसल हमारे देश के शासकों में संकल्प शक्ति का बड़ा अभाव रहा है. पिछले एक वर्ष की 2-3 घटनाओं का उल्लेख जरुरी है.
वर्ष 2013 में यूपीए की सरकार के कार्य काल में एक सरकारी आदेश जारी हुआ था, जिसमें यह लिखा गया था कि केन्द्र राज्य सरकारों से हिन्दी में पत्र व्यवहार करेगा तथा राज्य अपनी भाषा में केन्द्र से पत्र व्यवहार कर सकते है. शासन के स्तर पर यह कोई कठिन कार्य नही है, क्योंकि केन्द्र तमिलनाडू के तमिल भाषा को समझने के लिये तमिल हिन्दी अनुवादक और तमिलनाडू केन्द्र के हिन्दी पत्राचार को समझने के लिये उसी प्रकार के अनुवादक रख सकते है परन्तु तमिल सरकार के विरोध के आधार पर भाजपा की केन्द्र सरकार ने न केवल इस आदेश को वापिस ले लिया.
केन्द्रीय लोक सेवा आयोग के चयन प्रक्रिया में ’’सी सेट’’ को लागू करने के सबन्ध में हुई. इस सी सेट परम्परा को भी पिछली यूपीए सरकार के कार्यकाल में लागू किया गया था और वह भी प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह के ब्रिटेन के दौरे के बाद. इस सी सेट में अंग्रेजी का एक और पर्चा शुरु किया गया था, तथा जो प्रश्न उम्मीदवारो से पूॅछे जाते थे वे अंग्रेजी के हास्यापद अनुवाद के रुप में थे. जैसे स्टील प्लांट को इस्पात का पौधा लिखा जाना-स्टील प्लाट का मतलब इस्पात सयंत्र होता है.
परन्तु जिन अंग्रेजीदार लोगो ने उसका अनुवाद कर पर्चे में छापा उनकी मानसिकता और समझ इससे जाहिर होती है हजारों छात्रां ने जो हिन्दी भाषी क्षेत्र के थे और प्रान्तीय भाषाओं के थे ने इसका विरोध किया.
परन्तु जिन अंग्रेजीदार लोगो ने उसका अनुवाद कर पर्चे में छापा उनकी मानसिकता और समझ इससे जाहिर होती है हजारों छात्रां ने जो हिन्दी भाषी क्षेत्र के थे और प्रान्तीय भाषाओं के थे ने इसका विरोध किया.
राज्य और केन्द्र सरकारों की संकल्प शक्ति के अलावा दूसरी बड़ी बाधा मैं हिन्दी भाषी लोगो के व्यवहार में भी देखता हूं. दक्षिण भारत में और विषेषतः तमिलनाडू में योजनाबद्ध तरीके से यह प्रचार चलाया जाता है कि हिन्दी साम्राज्यवादी भाषा बनाई है यहां तक कि कुछ हिन्दी के मान्य विद्धान भी गाहे वेगाहे हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा घोषित करते है. इसलिये हिन्दी प्रेमियों को अपने और हिन्दी के ऊपर लगने वाले इस आरोप का उत्तर प्रेम व कर्म से देना होगा. हिन्दी भाषियों को अनिवार्य रुप से कम से कम कोई एक अन्य भारतीय भाषा और प्राथमिक तौर पर दक्षिण की किसी राज्य की भाषा अवश्य सीखना चाहिये. जब हम तमिल,तेलगू, कन्नड़ या मलयाली आदि किसी भाषा को सीखेगे तब हमें हिन्दी के राष्ट्रभाषा के समर्थन का ज्यादा नैतिक अधिकार होगा.
हिन्दी भाषियों को सच्चे भारतीय बनना होगा. सच्चा भारतीय से मेरा तात्पर्य बहुभाषी याने (हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय भाषा का ज्ञान) तथा दक्षिण भारतीयों से मित्रता और अपनत्व का नाता जोड़ना होगा. अगर हम यह पहल शुरु करें, कि प्रतिवर्ष केरल तमिलनाडू आदि किसी राज्य के कम से कम दो परिवारांे को साल में एक बार अपने घर पर बुलाकर मेहमान बनाये तो राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी, साथ ही हिन्दी साम्राज्यवाद का आरोप भी समाप्त होगा और हिन्दी की स्वीकारिता भी बढ़ेगी.
हिन्दी भाषियों को सच्चे भारतीय बनना होगा. सच्चा भारतीय से मेरा तात्पर्य बहुभाषी याने (हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय भाषा का ज्ञान) तथा दक्षिण भारतीयों से मित्रता और अपनत्व का नाता जोड़ना होगा. अगर हम यह पहल शुरु करें, कि प्रतिवर्ष केरल तमिलनाडू आदि किसी राज्य के कम से कम दो परिवारांे को साल में एक बार अपने घर पर बुलाकर मेहमान बनाये तो राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी, साथ ही हिन्दी साम्राज्यवाद का आरोप भी समाप्त होगा और हिन्दी की स्वीकारिता भी बढ़ेगी.
अंग्रेजी समर्थक तबका बहुत चतुराई से हिन्दी के बहुमत को अल्पमत में बदलने का षडयंत्र कर रहा है कुछ विद्वजन फौरी लोकप्रियता के लिये अपनी बोलियो को भाषा के रुप में दर्ज करने और संविधान के 8 वीं अनुसूची में षामिल कराने के लिये सक्रिय है इन बोली के बोलने वालो में धीरे-धीरे एक कट्टरता का भाव भी पैदा हो रहा है और वे अपनी मातृभाषा के रुप में बोली लिखने लगे है.
हिन्दी को सरल भाषा बनने का सबसे बड़ा तर्क हिन्दी का बहुसंख्यक (बहुसंख्या भाषिक)होना है परन्तु अगर भोजपुरी, मैंथिल, मगधी, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी आदि सब बोलियो वाले बोलियो केा मातृभाषा के रुप में जनगणना के दस्तावेजों में दिखाना व लिखना शुरु करेंगे तो हिन्दी का अधिकार और अस्तित्व समाप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. यह परिस्थिति अंग्रेजी के लिये लाभप्रद होगी. क्योंकि ऐसी दुर्घटना घटित होने पर अंग्रेजी भाषियों की संख्या हिन्दी भाषा का दर्जा मानने वालों से ज्यादा हो जायेगी.
हिन्दी को सरल भाषा बनने का सबसे बड़ा तर्क हिन्दी का बहुसंख्यक (बहुसंख्या भाषिक)होना है परन्तु अगर भोजपुरी, मैंथिल, मगधी, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी आदि सब बोलियो वाले बोलियो केा मातृभाषा के रुप में जनगणना के दस्तावेजों में दिखाना व लिखना शुरु करेंगे तो हिन्दी का अधिकार और अस्तित्व समाप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. यह परिस्थिति अंग्रेजी के लिये लाभप्रद होगी. क्योंकि ऐसी दुर्घटना घटित होने पर अंग्रेजी भाषियों की संख्या हिन्दी भाषा का दर्जा मानने वालों से ज्यादा हो जायेगी.
भाषा का उद्देश्य, संवाद और संपर्क करना होता है, हिन्दी भाषियों को आमजन में प्रचलित शब्दों को चाहे वे किसी भी भाषा के क्यों न हो, हिन्दी शब्दावली में षामिल कर लेना चाहिये. प्लेटफार्म, रेल सिंगनल जैसे जन प्रचलित शब्दों को भी हिन्दी शब्दकोष में षामिल करना चाहिये ऐसे सम्मिलन से हिन्दी की स्वीकारिता बढे़गी और हिन्दी सरल भी होगी.
भाषा की शुद्धता के नाम पर भाषा को कठिन या अबोधगम्य बनाना वैसी ही भूल होगी जैसा सी-सेट का अनुवाद. हिन्दी भाषियों के सामने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की इच्छा रखने वाले लोगो को सिर्फ संकल्प, शक्ति, भाषाई गाहृता, व्यापकता, उदारता के तरीकों को अंगीकृत करना होगा और उन सभी उपरोक्त वर्णित बाधाओं को दूर करना होगा जो हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में बाधक हों.
भाषा की शुद्धता के नाम पर भाषा को कठिन या अबोधगम्य बनाना वैसी ही भूल होगी जैसा सी-सेट का अनुवाद. हिन्दी भाषियों के सामने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की इच्छा रखने वाले लोगो को सिर्फ संकल्प, शक्ति, भाषाई गाहृता, व्यापकता, उदारता के तरीकों को अंगीकृत करना होगा और उन सभी उपरोक्त वर्णित बाधाओं को दूर करना होगा जो हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में बाधक हों.
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